तुवालु के संसद सदस्‍यों ने आम चुनाव के बाद प्रशांत द्वीपीय राष्‍ट्र के पूर्व महान्‍यायवादी फेलेटी टीओ को नया प्रधानमंत्री चुना

हाल ही में तुवालु (Tuvalu) के सांसदों सदस्यों ने प्रशांत द्विपीय राष्ट्र के पूर्व महान्यायवादी फेलेटी टीओ को देश का नया प्रधानमंत्री चुना है। सांसदों ने उन्हें निर्विरोध चुन लिया है क्योंकि वह प्रधानमंत्री पद के लिए एकमात्र उम्मीदवार के रूप में खड़े थे।



फेलेटी टेओ को तुवालु द्वीप का नया प्रधान मंत्री चुना गया है।

प्रशांत महासागर में स्थित तुवालु द्वीप के नए प्रधानमंत्री की घोषणा हो गई है। देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल फेलेटी टेओ को नए प्रधान मंत्री के रूप में चुना गया है। 

तुवालु में पिछले महीने जनवरी में चुनाव हुए थे। इन चुनावों पर ताइवान, चीन, ऑस्ट्रेलिया, यूके और यहां तक ​​कि अमेरिका की भी पैनी नजर थी। हाल के दिनों में तुवालु ताइवान के साथ अपने संबंधों को लेकर चर्चा में था।

25 वर्ग किलोमीटर में फैले इस देश में केवल 12 हजार लोग रहते हैं। लेकिन फिर भी भूराजनीति में इस देश का विशेष महत्व है।

तुवालु दक्षिण प्रशांत महासागर में ओशिनिया के पोलिनेशिया उपक्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया और हवाई द्वीप के बीच स्थित दुनिया के सबसे छोटे द्वीपों में से एक है। इसमें तीन रीफ द्वीप और छह एटोल शामिल हैं।
  
ताइवान के साथ तुवालु के रिश्ते इसे वैश्विक राजनीति में एक विशेष दर्जा देते हैं। आइए जानते हैं कि ताइवान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका इस छोटे से द्वीप राज्य को अपने पक्ष में रखने के लिए इतनी कोशिश क्यों कर रहे हैं। वहीं, चीन इस द्वीप पर अपना प्रभाव क्यों बढ़ाने की कोशिश कर रहा है?

तुवालु ताइवान के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

तुवालु कभी ब्रिटेन के अधीन था। इसे 1978 में आज़ादी मिली। हालाँकि, ब्रिटिश सम्राट अभी भी देश का प्रमुख है। भू-राजनीति में इसका महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि तुवालु ताइवान को मान्यता देता है। 

तुवालु सहित दुनिया के केवल 12 देशों ने ताइवान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी है, जो चीन की 'वन चाइना पॉलिसी' के खिलाफ है। चीन का मानना ​​है कि ताइवान उसका अभिन्न अंग है और एक दिन उसका चीन में विलय निश्चित है।

तुवालु उन तीन प्रशांत द्वीप देशों में से एक है जो अभी भी ताइवान को मान्यता देते हैं। हाल के दिनों में ताइवान के साझेदार देशों की संख्या घटी है। पिछले महीने जब नाउरू ने ताइवान से राजनयिक संबंध तोड़े थे तो इसकी वजह नाउरू पर चीन के बढ़ते प्रभाव को बताया गया था।

चीन तुवालु को क्यों चाहता है?

चीन ताइवान को मान्यता देने वाले छोटे द्वीपों पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। ताइवान को जितने कम देश मान्यता देंगे, चीन की 'वन चाइना पॉलिसी' उतनी ही मजबूत होगी।

विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तरह चीन आसानी से ताइवान पर कब्जा कर सकेगा। चीन मुख्य रूप से ताइवान के सहयोगी द्वीपों को जीतने के लिए धन का उपयोग कर रहा है। 

2019 में, किरिबाती और सोलोमन द्वीप समूह ने ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध समाप्त कर दिए। उस समय ताइवान के तत्कालीन विदेश मंत्री जोसेफ वू ने कहा था, 'चीन की डॉलर कूटनीति और बड़ी मात्रा में विदेशी सहायता के झूठे वादों के कारण सोलोमन द्वीप ने ताइवान के साथ संबंध खत्म कर दिए हैं।'

ऑस्ट्रेलिया और ताइवान तुवालु की कैसे मदद कर रहे हैं?

प्रधानमंत्री चुनाव के बाद अब चीन और ताइवान की नजर तुवालु पर है। ताइवान और तुवालु के बीच 1979 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे। 

ताइवान अलग-अलग तरीकों से तुवालु की मदद करता रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, ताइवान तुवालु को हर साल लगभग 12 मिलियन डॉलर की बजटीय सहायता प्रदान करता है। 

इसके अलावा ताइवान अपने सहयोगी देश को नई संसद भवन के लिए करीब 10 करोड़ डॉलर समेत कई परियोजनाओं के लिए पैसा देता है। ताइवान ने COVID-19 से निपटने के लिए तुवालु को चिकित्सा उपकरण भेजे।  

नवंबर में ऑस्ट्रेलिया और तुवालु के बीच एक संधि पर भी हस्ताक्षर किये गये। यह संधि ऑस्ट्रेलिया को प्राकृतिक आपदाओं, स्वास्थ्य महामारी और सैन्य आक्रामकता के जवाब में तुवालु की सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध करती है।

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