कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसद की स्थायी समिति ने संसद को सूचित किया है कि सरकार ने न्यायिक सुधारों पर उसकी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। इस समिति ने अपनी 133वीं रिपोर्ट में न्यायिक सुधारों पर सिफारिशें प्रस्तुत की थीं।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ से जुड़ा संवैधानिक प्रावधानः
संविधान के अनुच्छेद 130 में प्रावधान किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में अथवा ऐसे अन्य स्थान या स्थानों में स्थापित होगा, जिसे या जिन्हें भारत का मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की अनुमति से समय-समय पर निर्धारित करे।
क्षेत्रीय पीठों पर स्थायी समिति की सिफारिशें (133वीं रिपोर्ट)
सुप्रीम कोर्ट देश में 4 या 5 स्थानों पर अपनी क्षेत्रीय पीठें स्थापित करने के लिए अनुच्छेद 130 का उपयोग कर सकता है।
संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों और अन्य संवैधानिक मामलों का निपटारा दिल्ली मुख्य पीठ में किया जा सकता है। वहीं क्षेत्रीय पीठें अपीलीय मामलों पर फैसला कर सकती हैं। अपीलीय पीठों का निर्णय अंतिम माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय न्याय पीठों की आवश्यकता क्यों है?
- सभी के लिए 'न्याय तक पहुंच' एक मौलिक अधिकार है। इसमें क्षेत्रीय पीठें अपना योगदान दे सकती है।
- आम नागरिकों के लिए 'न्याय तक पहुंच' बढ़ेगी।
- मुकदमेबाजी की लागत कम होगी।
- भाषा संबंधी बाधाओं को दूर होंगी।
- समय और मेहनत की बचत होगी।
- संवैधानिक मामलों को अपीलीय मामलों से अलग करने से न्यायपालिका पर मुकदमों के बढ़ते बोझ का समाधान हो सकता है।
क्षेत्रीय पीठों के संबंध में चुनौतियां:
क्षेत्रीय पीठें कानूनों की परस्पर विरोधी व्याख्या कर सकती हैं। इससे न्यायिक प्रणाली की एकरूपता कमजोर हो सकती है।
क्षेत्रीय पीठें न्यायाधीशों के निष्पक्ष चयन और उनके कार्यभार आदि से संबंधित मामलों में भी विवादों को जन्म दे सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट की क्षेलीय पीठों के मामले में विधि आयोग की सिफारिशें (229वीं रिपोर्ट)
दिल्ली की संविधान पीठ संवैधानिक और अन्य संबद्ध मामलों पर सुनवाई कर सकती है।
उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी और पश्चिमी भारत में एक-एक अपीलीय पीठ स्थापित की जा सकती हैं। ये पीठें क्षेत्र विशेष की सभी अपीलों पर निर्णय करेंगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें