हिमाचल प्रदेश विधानसभा द्वारा धर्मांतरण के खिलाफ पारित कानून लागू हुआ

हिमाचल प्रदेश में जबरन या बहला-फुसलाकर धर्मांतरण या धर्मांतरण के 'एकमात्र उद्देश्य' से शादी के खिलाफ एक अधिक कठोर कानून लागू हो गया है, जिसमें उल्लंघनकर्ता को 7 साल की जेल का प्रदान किया गया है।

यह विधेयक पिछले 30 अगस्त को विधानसभा से पारित हुआ था, जिसे राज्यपाल ने मंजूरी दे दी थी, किंतु गृह मंत्रालय ने अब इसे मंजूरी दी है।

यह कानून पुराने हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता कानून, 2006 की जगह लेगा जिसके तहत 3 साल सजा का प्रावधान था, जिसे अदालत में चुनौती दी गई थी। हालाँकि यह कानून निरस्त हो गया था।

नया कानून बहकाकर, बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती प्रलोभन, विवाह या किसी अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाता है।

धर्मांतरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए किसी भी विवाह को अधिनियम की धारा पांच के तहत अमान्य घोषित किया गया है।

यदि कोई धर्म परिवर्तन कराना चाहता है तो उसे जिला मजिस्ट्रेट को 1 महीने पहले नोटिस देना होगा कि वह अपनी मर्जी से धर्मांतरण करा रहा है।

धर्मांतरण कराने वाले धार्मिक व्यक्ति को भी 1 महीने का नोटिस देना होगा। अपने 'मूल धर्म' से जुड़ने वालों को इस प्रावधान से छूट होगा।

नए अधिनियम के अनुसार यदि महिलाओं, नाबालिगों या दलितों का धर्म परिवर्तन कराया जाता है तो जेल की अवधि 7 से 14 साल के बीच होगी।

नोटा- हालांकि धोखेबाजी या जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून उत्तर प्रदेश सरकार पहले ही (पिछले महीना यानी नवंबर) लागू कर चुकी है, जिसमें 10 साल की जेल और ₹50,000 के जुर्माने का प्रावधान है।

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