यह विचार राष्ट्रपति ने नई दिल्ली में आयोजित मध्यस्थता पर पहले राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान व्यक्त किया। इस सम्मेलन के परिणामस्वरूप "भारतीय मध्यस्थता संघ" की स्थापना की गई है।
भारतीय मध्यस्थता संघ का उद्देश्य विवादों के समाधान हेतु मध्यस्थता को एक प्राथमिक, संगठित और सुलभविकल्प के रूप में स्थापित करना और उसका व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार करना है।
मध्यस्थता के बारे में
यह आर्बिट्रेशन और सुलह (Conciliation) के साथ-साथ वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्त्रों में से एक है।
2016 से लेकर 2025 के प्रारम्भ तक मध्यस्थता के जरिए 7,57,173 मामले निपटाए गए हैं।
मध्यस्थता का महत्व
न्यायपालिका पर बोझ में कमीः इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) 2025 के अनुसार, देश में न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या 5 करोड़ से अधिक हो चुकी है।
किफायती और शीघ्र न्यायः मध्यस्थता से महंगे कानूनी शुल्क, अदालत के खर्च और लंबी कानूनी प्रक्रिया में लगने वाले समय की बचत होती है।
सहकारी समस्या समाधानः इसमें एक तटस्थ तीसरा पक्ष बिना किसी का पक्ष लिए, संवाद को प्रोत्साहित करता है और समाधान तक पहुंचने में मदद करता है।
भारत में मध्यस्थता को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम
मध्यस्थता अधिनियम, 2023: यह एक एकीकृत व संस्थागत कानूनी फ्रेमवर्क स्थापित करता है।
वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015: इसे 2018 में संशोधित किया गया था ताकि प्री-इंस्टीट्यूशन एंड सेटलमेंट (PIMS) की व्यवस्था प्रदान की जा सके।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019: यह उपभोक्ता विवादों को निपटाने के लिए मध्यस्थता को एक त्वरित, आसान और किफायती तरीका के रूप में प्रोत्साहित करता है।
सिंगापुर मध्यस्थता कन्वेंशनः भारत ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं।
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