Elon Musk की कंपनी X ने आई.टी. अधिनियम के उल्लंघन को लेकर भारत सरकार पर मुकदमा दायर किया

हाल ही में Elon Musk की सोशल मीडिया कंपनी X ने आई.टी. अधिनियम के उल्लंघन को लेकर केंद्र सरकार पर मुकदमा दायर किया है। कंपनी ने सोशल मीडिया पर कंटेंट को विनियमित करने और हटाने का आदेश देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा आई.टी. अधिनियम की धारा 79 (3) (b) के उपयोग को चुनौती दी है। कंपनी ने तर्क दिया है कि सरकार द्वारा इस प्रावधान का "दुरुपयोग" आई.टी. अधिनियम के अन्य प्रावधानों जैसे धारा 69A के तहत उपलब्ध सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर देता है।


        दरअसल, ये मामला पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया X पर Grok AI से पूछे गए प्रश्नों और उनके मिले उत्तरों पर मचे बवाल से उठा है। सरकार के दबाव में अधिकारियों ने X के अधिकारियों से विवादित कंटेंट को हटाने को कहा था। आप लोगों को बता दें कि Grok, X का AI चैटबॉट है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आई.टी. अधिनियम) की धाराओं 79, 79(3) (b) व 69A के बारे में

  • धारा 79: यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एवं ऑनलाइन सेवा प्रदाताओं जैसे मध्यवर्तियों को "सेफ हार्बर (safe harbour)" संरक्षण प्रदान करती है। यह धारा उन्हें उनके प्लेटफॉर्म्स पर होस्ट की गई उपयोगकर्ता-जनित कंटेंट के लिए उत्तरदायित्व से बचाती है।
  • धारा 79 (3) (b): यदि कोई मध्यवर्ती सरकारी अधिसूचना पर गैर-कानूनी कंटेंट को ब्लॉक करने / हटाने में विफल रहता है तो "सेफ हार्बर" संरक्षण को हटा दिया जाता है।
  • धारा 69A: यह सरकार को केवल संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में दिए गए आधार पर ही कंटेंट को ब्लॉक करने के आदेश जारी करने की अनुमति देती है। यह अनुच्छेद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 'उचित प्रतिबंध' लगाता है।
  • श्रेया सिंघल मामले, 2015 में दिया गया निर्णयः कंटेंट को केवल धारा 69A के तहत प्रदान की गई प्रक्रियाओं या अदालत के आदेश के माध्यम से ही सेंसर किया जा सकता है।

2023 में भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) द्वारा जारी निर्देशः

  • इसने सभी मंत्रालयों, राज्य सरकारों और पुलिस को निर्देश जारी किया था कि धारा 79 (3) (b) के तहत सूचनाओं को ब्लॉक करने संबंधी आदेश जारी किए जा सकते हैं। 2024 में, MeitY ने एक 'सहयोग' पोर्टल लॉन्च किया था। इस पर उपर्युक्त प्राधिकारी सूचनाओं को ब्लॉक करने संबंधी आदेश जारी और अपलोड कर सकते हैं।

X द्वारा उठाए गए मुद्दे

  • धारा 79 (3) (b) का दुरुपयोगः यह सरकार को प्रत्यक्ष रूप से सूचनाओं को ब्लॉक करने की शक्तियां नहीं देती है, बल्कि केवल उन परिस्थितियों का उल्लेख करती है, जिनके तहत मध्यवर्ती अपने "सेफ हार्बर" संरक्षण से वंचित हो सकता है।
  • श्रेया सिंघल निर्णय का उल्लंघनः MeitY के निर्देश धारा 69A का पालन करने की बजाय कंटेंट को ब्लॉक करने के लिए धारा 79 (3) (b) को उपकरण मानकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करते हैं।

परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों की चिंताएं बढ़ी

परिसीमन को लेकर दक्षिण भारत के राजनीतिक गलियारों में संदेह और डर का माहौल बन गया है। इन राज्यों को इस बात की चिंता है कि परिवार नियोजन का, जिनका उन्होंने प्रभावी ढंग से पालन किया, उसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं उत्तर के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों को इसका (परिसीमन का) फायदा हो सकता है।



हाल ही में, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 25 फरवरी को केंद्र पर निशाना साधते हुए जनता से कहा कि अगले परिसीमन के बाद तमिलनाडु की 18 लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी। परिणामस्वरुप हमारे पास केवल 31 सांसद रह जाएंगे। आपको बता दें कि वर्तमान में तमिलनाडु से लोकसभा में कुल 39 सांसद चुनकर आते हैं।

एमके स्टालिन ने परिसीमन से पैदा होने वाली संभावित चुनौतियों पर 5 मार्च को तमिलनाडु के राजनीतिक दलों की एक मीटिंग बुलाई है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री का बयान ऐसे समय में आया है जब राज्य में अगले ही वर्ष विधानसभा चुनाव होने है और स्टालिन केंद्र की एनडीए सरकार के धुर राजनीतिक विरोधी हैं।

स्टालिन के बयान पर केंद्रीय गृह मंत्री ने आश्वासन दिया है कि परिसीमन के परिणामस्वरूप लोक सभा सीटों में होने वाली किसी भी वृद्धि में दक्षिणी राज्यों को उनका उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। साथ ही, उन्होंने कहा कि आनुपातिक आधार पर दक्षिणी राज्यों की एक भी लोक सभा सीट कम नहीं की जाएगी।

2024 में 'द हिंदू' में प्रकाशित एक खबर में कहा गया था कि परिसीमन अभ्यास के संबंध में सार्वजनिक डोमेन में दो विकल्पों पर चर्चा की जा रही है- पहला, मौजूद 543 सीटों को जारी रखना और विभिन्न राज्यों के बीच उनका पुनर्वितरण करना (तालिका 1) और दूसरा, विभिन्न राज्यों के बीच आनुपातिक वृद्धि के साथ सीटों की संख्या को 848 तक बढ़ाना (तालिका 2)।



परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों की चिंताएं

जनसंख्या नियंत्रणः जनसंख्या के आधार पर परिसीमन से लोक सभा में दक्षिणी राज्यों की सीटों की संख्या कम हो सकती है, जो उनके द्वारा जनसंख्या नियंत्रण हेतु प्रभावी प्रयासों के लिए एक दंड जैसा हो सकता है।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व में असंतुलनः जनसंख्या के आधार पर सीटों के पुनर्वितरण से संसद में दक्षिणी राज्यों का प्रभाव और उनका राजनीतिक महत्त्व कम हो सकता है।

संघवाद और क्षेत्रीय स्वायत्तता पर असरः प्रतिनिधित्व में बड़े बदलाव से संघीय व्यवस्था कमजोर हो सकती है, क्योंकि इससे राष्ट्रीय नीतियां मुख्य रूप से उत्तरी राज्यों के हितों के अनुसार बनाई जा सकती हैं। इससे दक्षिणी राज्यों के लोगों में असंतोष पैदा हो सकता है।


परिसीमन के बारे में

इसका तात्पर्य है कि लोकसभा और विधान सभाओं के लिए प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या और निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की प्रक्रिया।


संवैधानिक प्रावधानः

  • अनुच्छेद 82 और 170 में प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों (संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों और विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों) में पुनः समायोजित करने का प्रावधान किया गया है। इसे ऐसे प्राधिकार और ऐसी रीति से किया जाएगा, जैसा संसद विधि द्वारा निर्धारित करे।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 में लोक सभा और राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या पुनर्निर्धारित करने का प्रावधान है।


परिसीमन प्रक्रिया में संशोधन

  • वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत राज्यों की परिवार नियोजन योजनाओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा परिसीमन के तहत सीटों की संख्या में परिवर्तन किए जाने पर वर्ष 2001 की जनगणना तक रोक लगा दी गई थी।
  •  वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया।
  • वर्ष 2002 में संविधान के 84वें संशोधन के साथ इस प्रतिबंध को वर्ष 2026 तक बढ़ा दिया गया।
  • परिसीमन की प्रक्रिया को प्रतिबंधित करने के पीछे सरकार का यह तर्क था कि वर्ष 2026 तक (अनुमानतः) सभी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि का औसत सामान हो जाएगा।
  • संविधान की 84वें संशोधन के अनुसार वर्ष 2026 की जनगणना के आंकड़े जारी होने तक लोकसभा का परिसीमन वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर ही किया जाएगा।
  • साथ ही राज्यों के विधानसभाओं का परिसीमन वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर किया जाएगा।

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission)

  • परिसीमन आयोग को सीमा आयोग (Boundary Commission) के नाम से भी जाना जाता है।
  • प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है। 
  • परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है तथा यह भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है।
  • परिसीमन आयोग का गठन 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर अब तक चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में किया गया था।
  • पहले परिसीमन अभ्यास वर्ष 1950-51 में राष्ट्रपति (चुनाव आयोग की मदद से) द्वारा किया गया था।

परिसीमन आयोग की संरचना 

  • परिसीमन आयोग की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के एक सेवानिवृत न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
  • इसके अतिरिक्त इस आयोग में निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैं-
    •  मुख्य निर्वाचन आयुक्त या उसके द्वारा नामित कोई निर्वाचन आयुक्त।
    • संबंधित राज्यों के निर्वाचन आयुक्त।

सहयोगी सदस्य (Associate Members): 

आयोग परिसीमन प्रक्रिया के क्रियान्वयन के लिये प्रत्येक राज्य से 10 सदस्यों की नियुक्ति कर सकता है, जिनमें से 5 लोकसभा के सदस्य तथा 5 संबंधित राज्य की विधानसभा के सदस्य होंगे।


सहयोगी सदस्यों को लोकसभा स्पीकर तथा संबंधित राज्यों के विधानसभा स्पीकर द्वारा नामित किया जाएगा।


इसके अतिरिक्त परिसीमन आयोग आवश्यकता पड़ने पर निम्नलिखित अधिकारियों को बुला सकता है:

  • महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त, भारत (Registrar General and Census Commissioner of India)।
  • भारत के महासर्वेक्षक (The Surveyor General of India)।
  • केंद्र अथवा राज्य सरकार से कोई अन्य अधिकारी।
  • भौगोलिक सूचना प्रणाली का कोई विशेषज्ञ।
  • या कोई अन्य व्यक्ति, जिसकी विशेषज्ञता या जानकारी से परिसीमन की प्रक्रिया में सहायता प्राप्त हो सके।


परिसीमन आयोग की शक्तियाँ

  • परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय है, यह आयोग भारतीय संविधान के तहत प्रदत्त शक्तियों के माध्यम से देश में परिसीमन का कार्य करता है।
  • परिसीमन आयोग के आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तिथि से लागू होते हैं।
  • आयोग के आदेशों को कानून की तरह जारी किया जाता है और इन आदेशों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद आयोग के आदेशों की प्रतियाँ लोकसभा और संबंधित विधानसभा के समक्ष रखी जाती हैं।
  • लोकसभा अथवा विधानसभा को परिसीमन आयोग के आदेशों में किसी भी प्रकार के संशोधन की अनुमति नहीं होती है।

आगे की राह

  • पिछले परिसीमन अभ्यास ने बताया कि भारत की जनसंख्या में वृद्धि हुई है तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व में परिणामी विषमता को दूर करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • परिसीमन की कसौटी के रूप में केवल जनसंख्या पर निर्भर रहने के बजाय अन्य कारकों जैसे कि विकास संकेतक, मानव विकास सूचकांक और परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू करने के प्रयासों पर विचार करना चाहिये। यह राज्यों की ज़रूरतों और उपलब्धियों का अधिक व्यापक एवं न्यायसंगत प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।
  • जिन राज्यों ने प्रभावी ढंग से परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू किया है उनके प्रयासों की सराहना और पुरस्कृत किया जाना चाहिये।
  • संतुलित दृष्टिकोण को शामिल करने के लिये निधियों के हस्तांतरण के दिशा-निर्देशों की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिये। 



इक होर अश्वथामा के लेखक को मिला साहित्य अकादमिक पुरस्कार

हाल ही में, चमन अरोड़ा को उनकी पुस्तक "इक होर अश्वथामा" के लिए डोगरी में साहित्य अकादमी पुरस्कार 2024 से सम्मानित किया गया है।



साहित्य अकादमी पुरस्कार के बारे में

साहित्य अकादमी पुरस्कार की शुरुआत 1954 में की गई थी। यह पुरस्कार साहित्य अकादमी द्वारा दिया जाता है। यह अकादमी केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है। 

पहला पुरस्कार 1955 में दिया गया था।

यह पुरस्कार अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त किसी भी प्रमुख भारतीय भाषा में प्रकाशित साहित्यिक दृष्टि से सबसे उत्कृष्ट रचनाओं के लिए दिया जाता है।

अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं में संविधान की अनुसूची VIII के तहत सूचीबद्ध 22 भाषाएं तथा अंग्रेजी व राजस्थानी शामिल हैं।

पुरस्कार एक मंजूषा के रूप में होता है। इसमें एक उत्कीर्ण तांबे की पट्टिका होती है और 1,00,000/-रुपये नकद दिए जाते है।

माउंट टर्नकी (Mount Taranaki) ज्वालामुखी को मिला जीवन का अधिकार

हाल ही में, न्यूजीलैंड में माउंट टर्नकी को न्यूजीलैंड में 'लीगल पर्सन' के रूप में मान्यता दी गई है। माउंट टर्नकी एक स्ट्रैटोवोलकैनो है।

स्ट्रैटोवोलकैनो को मिश्रित ज्वालामुखी भी कहते है। यह अधिक ऊंचा, खड़ा और शंक्वाकार ज्वालामुखी है। इसमें चिपचिपे मैग्मा और अवरुद्ध गैसों के बाहर निकलने से विध्वंसक उद्गार होता है।



माउंट टर्नकी के बारे में

माउंट टर्नकी को ब्रिटिश कैप्टन जेम्स कुक ने माउंट एग्मोंट नाम दिया था। हालांकि, अब इसे माओरी देशज लोगों को सम्मान देने के लिए टर्नकी मौंगा (Taranaki Maunga) नाम दिया गया है।

यह न्यूजीलैंड के एग्मोंट नेशनल पार्क में स्थित है।

माओरी देशज लोग इसे अपना पूर्वज मानते हैं। इसलिए, उनके लिए यह पवित्र पर्वत है।

माओरी आओटेरोआ / न्यूजीलैंड की स्थानिक एबोरिजिनल (मूलवासी) आदिवासी और देशज नृजाति हैं।

इससे पहले न्यूजीलैंड ने 2014 में ते उरेवेरा फॉरेस्ट (Te Urewera Forest) को "लीगल पर्सनहुड" का दर्जा प्रदान किया था। इस तरह किसी प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को "जीवन का अधिकार" (Living rights) देने वाला न्यूजीलैंड दुनिया का पहला देश है।

न्यूजीलैंड के बारे में

  • यह दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीपीय देश है।
  • राजधानी - वेलिंग्टन
  • मुद्रा - न्यूजीलैंड डॉलर
  • महाद्वीप - ओशिनिया

प्रयागराज का महाकुंभ क्षेत्र (Mahakumbh Area) बना यूपी का 76वां जिला

उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रयागराज में महाकुंभ क्षेत्र को नया जिला घोषित किया है। नवगठित जिले को "महाकुंभ मेला" (mahakumbh Mela) के नाम से जाना जाएगा। 



आगामी कुंभ मेले के प्रबंधन और प्रशासन को सुव्यवस्थित करने के लिए यह निर्णय लिया गया है। नये जिले बनाने की मंशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने माघ मेला 2024 के दौरान व्यक्त की थी। 

इस नए जिले के गठन के बाद उत्तर प्रदेश में कुल 76 जिले हो गए हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेश का सबसे नया जिला संभल था जिसे 28 सितंबर, 2011 को गठित किया गया था।

नए जिले की अधिसूचना में प्रयागराज जिले की चार तहसीलों के 67 गांव शामिल है। नए जिले की अधिसूचना उत्तर प्रदेश प्रयागराज मेला अथॉरिटी एक्ट, 2017 के तहत जारी किया गया है।



सरकारी आदेश में कहा गया है, "महाकुंभ मेला जिले/क्षेत्र में, मेला अधिकारी, कुंभ मेला, प्रयागराज को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 14(1) एवं अन्य धाराओं के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जिला मजिस्ट्रेट एवं अपर जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्राप्त होंगी तथा उक्त संहिता या वर्तमान में लागू किसी अन्य कानून के अंतर्गत जिला मजिस्ट्रेट की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी तथा सभी श्रेणी के मामलों में कलेक्टर की सभी शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार होगा।"


महाकुंभ मेले के बारे में

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा समागम समारोह है। यह भारत में चार जगह पर किसी नदी के किनारे या उनके संगम पर लगते हैं; जैसे- उत्तराखंड में हरिद्वार, गंगा तट पर; उत्तर प्रदेश में प्रयाग, गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर; मध्य प्रदेश में उज्जैन, शिप्रा तट पर एवं महाराष्ट्र में नासिक, गोदावरी के तट पर। प्रत्येक जगह पर हर 12 साल पर कुंभ मेला लगता है, यानी प्रत्येक 4 साल पर किसी एक जगह कुंभ मेला लगता है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने अमृत (अमरता का पेय) की बूँदें कुंभ (बर्तन) में भरकर ले जाते समय चार स्थानों पर गिराई थीं। प्रयागराज सहित इन चार स्थानों को वर्तमान कुंभ मेले के स्थल के रूप में पहचाना जाता है।


कुंभ मेला नाम तथा उसमें परिवर्तन

कुंभ मेले का नाम चारों जगह पर अलग-अलग है। प्रयाग त्रिवेणी संगम पर लगने वाल मेले का नाम "कुम्भ मेला" पहले नहीं था, यह 19वीं शताब्दी के मध्य के बाद आया है। इसका पता अलग-अलग साक्ष्यों से लगता है।

चीनी यात्री व्हेन सॉन्ग अपने लेख में कुंभ मेले को सम्राट शिलादित्य (हर्ष) से जोड़कर उल्लेख किया है। उसने बताया है कि हर्ष हर 5 साल पर प्रयाग त्रिवेणी संगम पर एक अनुष्ठान का आयोजन करता था जिसमें अपनी सभी जमा पूंजी जनता में दान कर देता था।

19वीं शताब्दी से पहले प्रयाग में 12 साल के चक्र वाले कुंभ मेले का कोई रिकॉर्ड नहीं है। मत्स्य पुराण, चैतन्य चरित्रामृत, रामचरितमानस, तबकात-ए-अकबरी, आइन-ए-अकबरी, यादगा-ए-बहादुरी, खुलासत-उत-तवारीख और ब्रिटिश अभिलेख, सभी में इलाहबाद में लगने वाले केवल वार्षिक मेले का जिक्र है न की की कुंभ मेले का। हालांकि खुलासत-उत-तवारीख (लगभग 1695-1699) ने केवल हरिद्वार में होने वाले मेले के वर्णन के लिए "कुंभ मेला" शब्द का उपयोग किया है।

प्रयागराज में अशोक स्तंभ में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से कई शिलालेख हैं। लगभग 1575 ई. के आसपास, अकबर के काल के बीरबल ने एक शिलालेख जोड़ा जिसमें "प्रयाग तीर्थ राज में माघ मेले" का उल्लेख है।

इलाहाबाद में कुंभ मेले का सबसे पहला उल्लेख औपनिवेशिक युग के दस्तावेजों में 19वीं शताब्दी के मध्य के बाद ही मिलता है। 

कहा जाता है कि प्रयाग कुंभ मेले का नाम प्रयाग के साधु संतों ने हरिद्वार कुंभ मेले से उधार लिया है। हालांकि 12 दिसंबर 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में एक प्रस्ताव लाकर अर्ध कुंभ का नाम बदलकर "कुंभ" तथा कुंभ को "महाकुंभ" कर दिया।

अतः अब प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर हर 144 साल पर लगने वाले मेले को "वृहत महाकुंभ",  हर 12 साल में लगने वाले कुंभ मेला को '"महाकुंभ मेला", हर 6 साल पर लगने वाल मेले को "कुंभ मेला" तथा प्रत्येक साल लगने वाल मेले को "माघ मेला" कहते हैं।


कुम्भ मेला का आयोजन

इलाहाबाद में माघ मेला हर सर्दियों में माघ में आयोजित किया जाता है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। अर्ध कुंभ और महाकुंभ भी इसी समय आयोजित किए जाते हैं।



2013 का कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम था, जिसमें लगभग 120 मिलियन आगंतुक आए थे, जिसमें 10 फरवरी 2013 (मौनी अमावस्या के दिन) एक ही दिन में 30 मिलियन से अधिक लोग शामिल थे। यह दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समारोह था।

हर 12 साल में एक बार आयोजित होने वाला आगामी महाकुंभ प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी, 2025 को समाप्त होगा। उत्तर प्रदेश का अनुमान है कि महाकुंभ 2025 में 400 मिलियन से अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है।

2025 के महाकुंभ को "वृहद महाकुंभ" भी कहा जा रहा है। बृहद महाकुंभ 12 महाकुंभ के बराबर यानी 144 साल पर लगता है।


कुम्भ मेला का महत्व

  • इस त्यौहार/समारोह को पानी में एक अनुष्ठान डुबकी द्वारा चिन्हित किया जाता है, लेकिन यह कई मेलों, शिक्षा, संतों द्वारा धार्मिक प्रवचन, भिक्षुओं या गरीबों के सामूहिक भोजन और मनोरंजन तमाशे के साथ सामुदायिक वाणिज्य का उत्सव भी है।
  • यह समारोह दुनिया के सामने लोगों, धर्मों और संस्कृतियों का विशाल और शांतिपूर्ण समागम का उदाहरण पेश करता है।
  • पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार होता है।
  • लोगों को आजीविका और सरकार को राजस्व प्राप्त होता है।
  • लोगों के बीच एकता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • दिसंबर, 2017 में यूनेस्को ने कुंभ को "मानव की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत" घोषित किया।


कुंभ मेला क्षेत्र में देखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण जगह/चीजें

  • तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का अशोक स्तंभ
  • अक्षय वट वृक्ष
  • अकबर का किला, जो अकबर द्वारा 1575 में यमुना नदी के किनारे बनवाया गया था।
  • नागवशुकी मंदिर
  • नदियों का संगम स्थल
  • बड़े हनुमान मंदिर
  • प्रशासनिक व्यवस्था


अर्मेनिया अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का 104वाँ सदस्य बन गया है

अर्मेनिया अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का 104वाँ पूर्ण सदस्य बन गया है। 



अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के बारे में

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन एक वैश्विक अंतर-सरकारी संगठन है जो कार्बन-तटस्थ भविष्य के लिए सौर ऊर्जा अपनाने को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन भारत और फ्रांस के बीच एक सहयोगात्मक पहल है जिसका उद्देश्य सौर ऊर्जा समाधानों को लागू करके जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों को एकजुट करना है। 

इसकी संकल्पना 2015 में पेरिस में COP21 के दौरान की गई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में उष्णकटिबंधीय देशों (जो कर्क और मकर रेखा के बीच में है) के लिए किया था। उन्होंने इन देशों को 'सूर्यपुत्र' (सूर्य के पुत्र) कहा था।

इसका क्षेत्र नवीकरणीय ऊर्जा में काम करना और जलवायु परिवर्तन से निपटना है। इसका मुख्यालय राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान, गुरुग्राम, हरियाणा में है।

इसने सौर ऊर्जा को बढ़ाने में प्रौद्योगिकी, वित्त और क्षमता से संबंधित बाधाओं को सामूहिक रूप से दूर करने के लिए कई देशों को एक साथ लाया है। इसका मिशन 2030 तक सौर निवेश में एक ट्रिलियन डॉलर को अपनाना है, साथ ही प्रौद्योगिकी और वित्तपोषण लागत को कम करना है। 

भारत दुनिया को अक्षय ऊर्जा समाधान प्रदान करके टिकाऊ ऊर्जा भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

उत्तर प्रदेश पीसीएस 2024 की प्रारंभिक परीक्षा दो दिन कराने की आयोग के फैसले के खिलाफ प्रतियोगी छात्रों ने मचाया बवाल

उत्तर प्रदेश PCS 2024 की प्रारंभिक परीक्षा और RO/ ARO 2023 की प्रारंभिक परीक्षा एक की बजाय दो दिन में कराने के UPPSC के फैसले को लेकर मचे बवाल के बीच प्रतियोगी छात्रों ने कई सवाल उठाए हैं। प्रतियोगी छात्रों का तर्क है कि जिस आयोग की भर्तियों की जांच CBI कर रही हो और जिसके ऊपर High Court में PCS-J जैसी प्रारंभिक परीक्षा की कॉपी बदलने और हेरफेर के आरोप सिद्ध हो चुके हैं उसके मानकीकरण (Normalization) पर भरोसा क्यों और कैसे करें।



PCS 2024 के विज्ञापन में दो पालियों में पेपर आयोजित करने तथा मानकीकरण का कोई उल्लेख नहीं है। यह तब है जबकि Supreme Court की संवैधानिक पीठ का निर्णय है कि खेल का नियम बीच में नहीं बदला जा सकता है, यहां तो पूरा खेल ही बदल जा रहा है। पीसीएस की प्रारंभिक परीक्षा में एक सी-सैट का पेपर होता है, जो क्वालीफाइंग प्रकृति का होता है। इस पेपर में नॉर्मलाइजेशन (मानकीकरण) कैसे होगा, इस पर आयोग मौन है। प्रारम्भिक परीक्षा में अभ्यर्थियों को न तो उनका स्कोरकार्ड दिया जाता है और न ही आयोग की तरफ से फाइनल उत्तरकुंजी जारी की जाती है।

ऐसे में अभ्यर्थियों को न तो उनका अनुमानित अंक (रॉ स्कोर) पता होगा, न ही विवादित या हटाए गए प्रश्नों की संख्या। लोक सेवा आयोग को पहले से ही रिकॉर्ड न रखने, गलत प्रश्न बनाने, उत्तर कुंजी जारी न करने, समय पर अंकपत्र जारी न करने इत्यादि को लेकर अनेक मामलों में उच्च न्यायालय फटकार लगा चुका है। आयोग की सत्यनिष्ठा खुद ही कठघरे में है। ऐसे में आयोग नॉर्मलाइजेशन (मानकीकरण) की प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से कैसे लागू करेगा, इसको लेकर अभ्यर्थी चिंतित हैं। छात्रों का तर्क है कि संघ लोकसेवा आयोग या अन्य कोई राज्य लोक सेवा आयोग जब इतने बड़े स्तर पर प्रक्रिया में बदलाव करते हैं तो उसकी सूचना एकाध वर्ष पहले ही दे देते हैं। यहां न किसी विशेषज्ञ से राय ली गई और न ही अभ्यर्थियों को इसकी पूर्व सूचना थी।

UPPSC अपना स्तर UPSC के बराबर करें

अभ्यर्थियों का तर्क है कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) को अपना स्तर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के बराबर करना चाहिए न कि खुद को Bank, SSC, Railway, Police जैसी परीक्षा की नकल करनी चाहिए। दो शिफ्ट में परीक्षा कराना सरकार की नीतियों के खिलाफ है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी आदेश में पीसीएस जैसी विशिष्ट श्रेणी की परीक्षा को एक ही शिफ्ट में कराने पर सैद्धांतिक सहमति लिखित रूप में व्यक्त की गई थी। सरकार ने 19 जून 2024 के शासनादेश से पीसीएस की परीक्षा को मुक्त रखा है जिसमें परीक्षा केंद्रों के लिए कुछ मानक (जैसे परीक्षा केंद्रों की दूरी कलेक्ट्रेट से 10 किमी के भीतर हो) तय किए गए हैं। आखिर प्रदेश के केवल 41 जिलों में ही प्रारंभिक परीक्षा क्यों कराई जा रही है सभी जिलों में क्यों नहीं। लखनऊ, कानपुर, आगरा, वाराणसी, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, प्रयागराज, मेरठ, झांसी जैसे शहर दूर तक फैले हुए हैं, यहां परीक्षा केंद्रों के लिए दस किलोमीटर की सीमा बेमानी है।

प्रणाली में पारदर्शिता और स्पष्टता का अभाव

प्रतियोगी छात्रों का तर्क है कि आयोग की ओर से प्रस्तुत प्रणाली में पारदर्शिता और स्पष्टता का अभाव है। मानकीकरण का फॉर्मूला यूपीपीएससी ने किसी दूसरी परीक्षा से कॉपी किया है, स्वयं तैयार नहीं किया है। यूपीपीएससी की परीक्षा तीन चरणों में होती है। अक्सर मानकीकरण की प्रक्रिया वहां अपनाई जाती है जहां परीक्षा में प्राप्त अंकों से अंतिम मेरिट सूची तैयार की जाती है, जबकि यूपीपीएससी की यह परीक्षा एक स्क्रीनिंग परीक्षा है। यदि मानकीकरण कारगर होता तो संघ लोक सेवा आयोग बहुत पहले इसे लागू कर चुका होता। पीसीएस/आरओ/एआरओ में 150-600 के बीच पद होते हैं। मानकीकरण के कारण अनेक योग्य अभ्यर्थी बाहर हो जाएंगे।

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ऑनलाइन कपड़े बेचने के लिए आपको कुछ महत्वपूर्ण चरणों का पालन करना होगा। यहाँ एक विस्तृत गाइड है:



बाजार अनुसंधान

ट्रेंड्स और मांग: वर्तमान फैशन ट्रेंड्स और ग्राहकों की मांग को समझें।

प्रतियोगिता: अन्य ऑनलाइन स्टोर्स और उनके उत्पादों का विश्लेषण करें।


बिजनेस प्लान

लक्ष्य बाजार: आपके कपड़ों के लक्षित ग्राहक कौन हैं (उम्र, लिंग, शैली आदि)?

ब्रांडिंग: आपके ब्रांड का नाम, लोगो, और ब्रांड की पहचान बनाएं।


प्रोडक्ट सोर्सिंग

 निर्माताओं और सप्लायर्स: विश्वसनीय निर्माताओं और सप्लायर्स से जुड़ें।

इन्वेंटरी मैनेजमेंट: स्टॉक को व्यवस्थित और प्रबंधित करने की योजना बनाएं।


ऑनलाइन स्टोर सेटअप

ई-कॉमर्स प्लेटफार्म: Shopify, WooCommerce, या BigCommerce जैसे प्लेटफार्म का चयन करें।

वेबसाइट डिजाइन: एक आकर्षक और उपयोगकर्ता-अनुकूल वेबसाइट डिजाइन करें।

प्रोडक्ट लिस्टिंग: उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरों और विस्तृत विवरणों के साथ उत्पादों को लिस्ट करें।


मार्केटिंग और प्रमोशन

सोशल मीडिया: Instagram, Facebook, Pinterest आदि पर अपनी उपस्थिति बनाएं।

SEO: अपनी वेबसाइट को सर्च इंजन के लिए ऑप्टिमाइज़ करें।

ईमेल मार्केटिंग: संभावित ग्राहकों को ईमेल के माध्यम से प्रमोशन्स और नए उत्पादों की जानकारी दें।


ऑर्डर फुलफिलमेंट

लॉजिस्टिक्स और शिपिंग: एक भरोसेमंद शिपिंग पार्टनर का चयन करें।

कस्टमर सर्विस: ग्राहकों की शिकायतों और प्रश्नों का समय पर और प्रभावी उत्तर दें।


वित्तीय प्रबंधन

 पेमेंट गेटवे: विभिन्न भुगतान विकल्प जैसे क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, और वॉलेट्स को एकीकृत करें।

बुककीपिंग: अपने वित्तीय रिकॉर्ड को व्यवस्थित रखें और नियमित रूप से अपडेट करें।


निरंतर सुधार

फीडबैक: ग्राहकों से फीडबैक लें और उसके अनुसार अपने उत्पादों और सेवाओं में सुधार करें।

डेटा एनालिटिक्स: बिक्री, ट्रैफिक, और अन्य महत्वपूर्ण डेटा का विश्लेषण करें ताकि आप अपने बिजनेस को बेहतर बना सकें।


इन सभी चरणों का पालन करके, आप अपने ऑनलाइन कपड़ों के बिजनेस को सफलतापूर्वक स्थापित और प्रबंधित कर सकते हैं।

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और विदेश मंत्री की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत

हाल ही में, ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और उनके विदेश मंत्री की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई है। इस दुर्घटना में राष्ट्रपति समेत कुल 9 लोगों की मौत हुई है।



यह घटना तब घटी जब रविवार को अज़रबैजान में किज कलासी और खोदाफरिन बांध का उद्घाटन करके तबरेज (पूर्वी अज़रबैजान प्रांत की राजधानी) लौट रहे थे। हालांकि उनके मौत की पुष्टि सोमवार को मलबा मिलने के बाद हुई।

बताया जाता है कि जहां पर हेलीकॉप्टर क्रैश हुआ था वहां मौसम काफी खराब था।


साजिश की आशंका

हालाँकि ईरानी सोशल मीडिया पर हेलीकॉप्टर क्रैश के पीछे साजिश होने की आशंका जताई जा रही हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह कैसे संभव है कि काफिले के दो हेलीकॉप्टर सुरक्षित पहुंच गए जबकि केवल रईसी का हेलीकॉप्टर क्रैश हुआ है। 

अमेरिका के एक सीनेटर का कहना है कि मेरी अमेरिकी खुफिया एजेंसी के अधिकारियों से बातचीत हुई है, लेकिन उनके अनुसार साजिश के किसी सबूत की जानकारी नहीं है।


ईरान का खराब एविएशन सुरक्षा

अभी तक हेलीकॉप्टर क्रैश होने की वजह के बारे में पता नहीं चला है। लेकिन ईरान का एयर ट्रांसपोर्ट की सुरक्षा का रिकॉर्ड काफी खराब है। इसकी एक वजह कई दशकों से लगाए जा रहे अमेरिकी प्रतिबंधों को माना जा रहा है। इन प्रतिबंधों के कारण ईरान का एविएशन सेक्टर कमजोर हुआ है।

आपको बता दें कि रईसी 'बेल 212' हेलीकॉप्टर पर सवार थे जो अमेरिका में बना था।

अतीत में ईरान के कई बड़े मंत्रियों और अधिकारियों की मौत प्लेन या हेलीकाप्टर दुर्घटना से हुई है। इसमें शामिल है- रक्षा और यातायात मंत्री, थल और वायु सेना के कमांडर।


क्या सच में अगला विश्वयुद्ध जल के मुद्दे पर होंगे?

हाल ही, में संयुक्त राष्ट्र ने 'विश्व जल विकास रिपोर्ट, 2024' जारी की है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने में जल की महत्वपूर्ण भूमिका है। हालांकि, "इस बात का कोई निर्णायक सबूत नहीं है कि अगला युद्ध जल के मुद्दे पर होंगे।"

इस वर्ष की रिपोर्ट 'समृद्धि और शांति के लिए जल' विषय पर केंद्रित है।


रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

जल संसाधनों की वर्तमान स्थिति

  • कृषि क्षेत्रक लगभग 70% ताजे जल की खपत के लिए जिम्मेदार है। पिछले 60 वर्षों में चाड झील 90% तक सिकुड़ गई है। हालांकि, साझा सतही जल पर सहयोग बढ़ रहा है, लेकिन भूजल संसाधन संरक्षण की अभी भी गंभीर उपेक्षा की जा रही है।


2030 तक "सभी के लिए जल" से संबंधित सतत विकास लक्ष्य (SDG)-6 हासिल करना चुनौतीपूर्ण है। दुनिया की 50% आबादी साल के किसी न किसी समय गंभीर जल संकट का सामना करती है। उत्तर-पश्चिम भारत और उत्तरी चीन खाद्य उत्पादन के लिए पानी की उपलब्धता से संबंधित जोखिमों के मामले में दुनिया के शीर्ष तीन हॉटस्पॉट्स में शामिल हैं।

जल और समृद्धि के बीच विरोधाभास के मौजूद होने से सभी के लिए जल उपलब्ध करा पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। हम सभी जानते हैं कि विकसित जल संसाधन अवसंरचना से संवृद्धि और समृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि, ऐसी अवसंरचना केवल सबसे अमीर देश ही वहन कर सकते हैं।

रिपोर्ट में की गई मुख्य सिफारिशेंः 

जल संसाधनों का संधारणीय प्रबंधन निम्नलिखित उपायों द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है:

  • सीमा-पार जल समझौते किए जाने चाहिए।
  • जल अवसंरचना में निजी निवेश बढ़ाया जाना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार जल तक सार्वभौमिक पहुंच के लिए 2030 तक लगभग 114 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक निवेश की आवश्यकता होगी।
  • उद्योगों में वस्तु उत्पादन को जल संसाधन से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, टाटा केमिकल्स ने पुनर्चक्रण और बेहतर जल प्रबंधन के माध्यम से एक वर्ष के भीतर भूजल के उपयोग में 99.4% की कटौती की।

जल का "शांति और समृद्धि" से संबंध

जल और शांतिः 

जल संकट के निम्नलिखित दुष्परिणाम हो सकते हैं-

  • स्थानीय विवादों में वृद्धि जैसा कि अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में देखा जा रहा है।
  • अधिक प्रवासन से बसाहट वाले क्षेत्रों में तनाव बढ़ सकता है।
  • खाद्य असुरक्षा बढ़ सकती है।

जल और समृद्धिः

  • जल पर्यावरण को प्राकृतिक रूप में बनाए रखने में मदद करता है।
  • निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देशों में लगभग 70-80% रोजगार जल पर निर्भर हैं।
  • पानी समावेशी विकास के लिए महत्वपूर्ण है। लड़कियां और महिलाएं जल संकट का सामना सबसे पहले करती हैं, क्योंकि यह उनकी शिक्षा, आर्थिक भागीदारी और सुरक्षा को प्रभावित करता है।

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