परिसीमन को लेकर दक्षिण भारत के राजनीतिक गलियारों में संदेह और डर का माहौल बन गया है। इन राज्यों को इस बात की चिंता है कि परिवार नियोजन का, जिनका उन्होंने प्रभावी ढंग से पालन किया, उसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं उत्तर के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों को इसका (परिसीमन का) फायदा हो सकता है।
हाल ही में, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 25 फरवरी को केंद्र पर निशाना साधते हुए जनता से कहा कि अगले परिसीमन के बाद तमिलनाडु की 18 लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी। परिणामस्वरुप हमारे पास केवल 31 सांसद रह जाएंगे। आपको बता दें कि वर्तमान में तमिलनाडु से लोकसभा में कुल 39 सांसद चुनकर आते हैं।
एमके स्टालिन ने परिसीमन से पैदा होने वाली संभावित चुनौतियों पर 5 मार्च को तमिलनाडु के राजनीतिक दलों की एक मीटिंग बुलाई है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री का बयान ऐसे समय में आया है जब राज्य में अगले ही वर्ष विधानसभा चुनाव होने है और स्टालिन केंद्र की एनडीए सरकार के धुर राजनीतिक विरोधी हैं।
स्टालिन के बयान पर केंद्रीय गृह मंत्री ने आश्वासन दिया है कि परिसीमन के परिणामस्वरूप लोक सभा सीटों में होने वाली किसी भी वृद्धि में दक्षिणी राज्यों को उनका उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। साथ ही, उन्होंने कहा कि आनुपातिक आधार पर दक्षिणी राज्यों की एक भी लोक सभा सीट कम नहीं की जाएगी।
2024 में 'द हिंदू' में प्रकाशित एक खबर में कहा गया था कि परिसीमन अभ्यास के संबंध में सार्वजनिक डोमेन में दो विकल्पों पर चर्चा की जा रही है- पहला, मौजूद 543 सीटों को जारी रखना और विभिन्न राज्यों के बीच उनका पुनर्वितरण करना (तालिका 1) और दूसरा, विभिन्न राज्यों के बीच आनुपातिक वृद्धि के साथ सीटों की संख्या को 848 तक बढ़ाना (तालिका 2)।
परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों की चिंताएं
जनसंख्या नियंत्रणः जनसंख्या के आधार पर परिसीमन से लोक सभा में दक्षिणी राज्यों की सीटों की संख्या कम हो सकती है, जो उनके द्वारा जनसंख्या नियंत्रण हेतु प्रभावी प्रयासों के लिए एक दंड जैसा हो सकता है।
राजनीतिक प्रतिनिधित्व में असंतुलनः जनसंख्या के आधार पर सीटों के पुनर्वितरण से संसद में दक्षिणी राज्यों का प्रभाव और उनका राजनीतिक महत्त्व कम हो सकता है।
संघवाद और क्षेत्रीय स्वायत्तता पर असरः प्रतिनिधित्व में बड़े बदलाव से संघीय व्यवस्था कमजोर हो सकती है, क्योंकि इससे राष्ट्रीय नीतियां मुख्य रूप से उत्तरी राज्यों के हितों के अनुसार बनाई जा सकती हैं। इससे दक्षिणी राज्यों के लोगों में असंतोष पैदा हो सकता है।
परिसीमन के बारे में
इसका तात्पर्य है कि लोकसभा और विधान सभाओं के लिए प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या और निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की प्रक्रिया।
संवैधानिक प्रावधानः
- अनुच्छेद 82 और 170 में प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों (संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों और विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों) में पुनः समायोजित करने का प्रावधान किया गया है। इसे ऐसे प्राधिकार और ऐसी रीति से किया जाएगा, जैसा संसद विधि द्वारा निर्धारित करे।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 में लोक सभा और राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या पुनर्निर्धारित करने का प्रावधान है।
परिसीमन प्रक्रिया में संशोधन
- वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत राज्यों की परिवार नियोजन योजनाओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा परिसीमन के तहत सीटों की संख्या में परिवर्तन किए जाने पर वर्ष 2001 की जनगणना तक रोक लगा दी गई थी।
- वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया।
- वर्ष 2002 में संविधान के 84वें संशोधन के साथ इस प्रतिबंध को वर्ष 2026 तक बढ़ा दिया गया।
- परिसीमन की प्रक्रिया को प्रतिबंधित करने के पीछे सरकार का यह तर्क था कि वर्ष 2026 तक (अनुमानतः) सभी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि का औसत सामान हो जाएगा।
- संविधान की 84वें संशोधन के अनुसार वर्ष 2026 की जनगणना के आंकड़े जारी होने तक लोकसभा का परिसीमन वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर ही किया जाएगा।
- साथ ही राज्यों के विधानसभाओं का परिसीमन वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर किया जाएगा।
परिसीमन आयोग (Delimitation Commission)
- परिसीमन आयोग को सीमा आयोग (Boundary Commission) के नाम से भी जाना जाता है।
- प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
- परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है तथा यह भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है।
- परिसीमन आयोग का गठन 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर अब तक चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में किया गया था।
- पहले परिसीमन अभ्यास वर्ष 1950-51 में राष्ट्रपति (चुनाव आयोग की मदद से) द्वारा किया गया था।
परिसीमन आयोग की संरचना
- परिसीमन आयोग की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के एक सेवानिवृत न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
- इसके अतिरिक्त इस आयोग में निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैं-
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त या उसके द्वारा नामित कोई निर्वाचन आयुक्त।
- संबंधित राज्यों के निर्वाचन आयुक्त।
सहयोगी सदस्य (Associate Members):
आयोग परिसीमन प्रक्रिया के क्रियान्वयन के लिये प्रत्येक राज्य से 10 सदस्यों की नियुक्ति कर सकता है, जिनमें से 5 लोकसभा के सदस्य तथा 5 संबंधित राज्य की विधानसभा के सदस्य होंगे।
सहयोगी सदस्यों को लोकसभा स्पीकर तथा संबंधित राज्यों के विधानसभा स्पीकर द्वारा नामित किया जाएगा।
इसके अतिरिक्त परिसीमन आयोग आवश्यकता पड़ने पर निम्नलिखित अधिकारियों को बुला सकता है:
- महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त, भारत (Registrar General and Census Commissioner of India)।
- भारत के महासर्वेक्षक (The Surveyor General of India)।
- केंद्र अथवा राज्य सरकार से कोई अन्य अधिकारी।
- भौगोलिक सूचना प्रणाली का कोई विशेषज्ञ।
- या कोई अन्य व्यक्ति, जिसकी विशेषज्ञता या जानकारी से परिसीमन की प्रक्रिया में सहायता प्राप्त हो सके।
परिसीमन आयोग की शक्तियाँ
- परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय है, यह आयोग भारतीय संविधान के तहत प्रदत्त शक्तियों के माध्यम से देश में परिसीमन का कार्य करता है।
- परिसीमन आयोग के आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तिथि से लागू होते हैं।
- आयोग के आदेशों को कानून की तरह जारी किया जाता है और इन आदेशों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
- परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद आयोग के आदेशों की प्रतियाँ लोकसभा और संबंधित विधानसभा के समक्ष रखी जाती हैं।
- लोकसभा अथवा विधानसभा को परिसीमन आयोग के आदेशों में किसी भी प्रकार के संशोधन की अनुमति नहीं होती है।
आगे की राह
- पिछले परिसीमन अभ्यास ने बताया कि भारत की जनसंख्या में वृद्धि हुई है तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व में परिणामी विषमता को दूर करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
- परिसीमन की कसौटी के रूप में केवल जनसंख्या पर निर्भर रहने के बजाय अन्य कारकों जैसे कि विकास संकेतक, मानव विकास सूचकांक और परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू करने के प्रयासों पर विचार करना चाहिये। यह राज्यों की ज़रूरतों और उपलब्धियों का अधिक व्यापक एवं न्यायसंगत प्रतिनिधित्व प्रदान करेगा।
- जिन राज्यों ने प्रभावी ढंग से परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू किया है उनके प्रयासों की सराहना और पुरस्कृत किया जाना चाहिये।
- संतुलित दृष्टिकोण को शामिल करने के लिये निधियों के हस्तांतरण के दिशा-निर्देशों की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिये।
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