भारतीय उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय : पृष्ठभूमि


उच्चतम न्यायालय का चिन्ह

भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत 1 अक्टूबर, 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना हुई थी।

इसका 28 जनवरी, 1950 को भारत के उच्चतम न्यायालय के रूप में उद्घाटन किया गया।

भारतीय संविधान के भाग-V में अनुच्छेद 124 से 147 तक उच्चतम न्यायालय के गठन, स्वतंत्रता, न्यायक्षेत्र, शक्तियां, प्रक्रिया आदि का उल्लेख है। 

वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 34 (33+1) है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

वर्तमान में भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे (नवंबर 2019 से अब तक) है, जो भारत के 47 में मुख्य न्यायाधीश हैं।

भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश हीरालाल जे. कनिया (1950-51) थे।

अमेरिकी संविधान के विपरीत, भारतीय संविधान ने एकीकृत न्याय व्यवस्था की स्थापना की है, जिसमें शीर्ष स्थान पर उच्चतम न्यायालय व उसके अधीन उच्च न्यायालय है।

यह संघीय न्यायालय, याचिका के लिए सर्वोच्च न्यायालय, नागरिकों के मूल अधिकारों का गारंटर और संविधान का अभिभावक है।

 उच्चतम न्यायालय का परिसर

न्यायाधीशों की नियुक्ति

संविधान के अनुच्छेद 126 में मुख्य कार्यकारी न्यायाधीश की नियुक्ति दिया गया है।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।

मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति अन्य न्यायाधीशों एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह के बाद करता है।

मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद करता है। इसमें मुख्य न्यायधीश का परामर्श आवश्यक है।

दूसरे न्यायधीश मामले (1993) में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए।


न्यायाधीशों की अर्हताएं

उसे भारत का नागरिक होना चाहिए।

(अ) उसे उच्च न्यायालय का कम से कम 5 साल के लिए न्यायधीश होना चाहिए, या (ब) उसे उच्च न्यायालय या विभिन्न न्यायालयों में मिलाकर 10 वर्ष तक वकील होना चाहिए, या (स) राष्ट्रपति के मत में उसे सम्मानित न्यायवादी होना चाहिए।

नोट- संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु का उल्लेख नहीं है।


न्यायाधीशों का कार्यकाल

संविधान में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल तय नहीं किया गया है, किंतु इस संबंध में कुछ उपबंद किए गए हैं-

1. वह 65 वर्ष की आयु तक पद पर बना रह सकता है। उसके मामले में किसी प्रश्न के उठने पर संसद द्वारा स्थापित संस्था इसका निर्धारण करेगी।

2. वह राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र दे सकता है।

3. संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा उसे पद से हटाया जा सकता है।


महाभियोग प्रक्रिया

न्यायधीश जांच अधिनियम (1968) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंद करता है- 

1. निष्कासन प्रस्ताव 100 सदस्यों (लोकसभा के मामले में) या 50 सदस्यों (राज्यसभा के मामले में) द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद अध्यक्ष/सभापति को दिया जाना चाहिए।

2. अध्यक्ष/सभापति इस प्रस्ताव को शामिल भी कर सकते हैं या इसे अस्वीकार भी कर सकते हैं।

3. यदि इसे स्वीकार कर लिया जाए तो अध्यक्ष/सभापति को इसकी जांच के लिए 3 सदस्यीय समिति गठित करनी होगी।

4. समिति में शामिल होना चाहिए- (अ) मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश, (ब) किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और (स) प्रतिष्ठित न्यायवादी।

5. यदि समिति न्यायधीश को दुर्व्यवहार का दोषी या असक्षम पाती है तो सदन इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है।

6. विशेष बहुमत से दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कर इसे राष्ट्रपति को भेजा जाता है।

7. अंत में राष्ट्रपति न्यायधीश को हटाने का आदेश जारी कर देता है।


नोट- राष्ट्रपति न्यायधीश को उसके पद से हटाने का आदेश तभी दे सकता है जब संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो। इस आदेश को संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत (यानी सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा सदन के उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों का दो-तिहाई) का समर्थन प्राप्त होना चाहिए।

उसे हटाने का आधार उसका दुर्व्यवहार या सिद्ध कदाचार होना चाहिए

न्यायाधीशों को हटाने संबंधी एक प्रस्ताव लोकसभा विघटित होने पर समाप्त नहीं होगा।

अभी तक उच्चतम न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश पर महाभियोग नहीं लगाया गया।


उच्चतम न्यायालय की शक्तियां एवं  क्षेत्राधिकार

उच्चतम न्यायालय की शक्ति एवं न्याय क्षेत्रों को निम्नलिखित तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है-

1. मूल क्षेत्राधिकार 
2. न्यायादेश क्षेत्राधिकार 
3. अपीलीय क्षेत्राधिकार
4. सलाहकार क्षेत्राधिकार 
5. अभिलेखों का न्यायालय
6. न्यायिक समीक्षा की शक्ति 
7. अन्य शक्तियां

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