भगवद् गीता और नाट्यशास्त्र की पांडुलिपियोों को यूनेस्को के ‘मेमोरी ऑफ द वर्लल्ड रजिस्टर’ मेें शामिल किय गया

हाल ही में, यूनेस्को (UNESCO) ने अपनी 'मेमोरी आफ द वर्ल्ड रजिस्टर' में 72 देशों और चार अंतरराष्ट्रीय संगठनों से कुल 74 नई प्रविष्टियां शामिल किया है।

इनमें भारत की भगवत गीता और नाट्यशास्त्र की पांडुलिपियों को भी यूनेस्को के 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर' में शामिल किया गया है।



यूनेस्को के इस रजिस्टर में अब भारत की कुल 14 प्रविष्टियां (अभिलेख) शामिल हो गई हैैं। इसमें भारत के ऋग्वेद, गिलगित पांडुलिपि, अभिनवगुप्त (940-1015 ई.) की पांडुलिपियां, मैत्रेव्याकरण (पाल काल की एक पांडुलिपि) को भी शामिल किया गया है।

वर्ष 1948 मेें पेरिस मेें संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित ‘मानवाधिकारों पर सार्वभौमिक घोषणा’ भी रजिस्टर मेें शामिल की गई नई प्रविष्टियों मेें से एक है।

भगवद् गीता और नाट्यशास्त्र के बारे मेें

भगवद् गीता:

भगवद् गीता को गीता के नाम से भी जाना जाता है। यह हिंदुओं का एक धार्मिक ग्रंथ है। इसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक है। यह ग्रंथ महाभारत में भीष्मपर्व (अध्याय 23-40) का एक हिस्सा है।

इसे कुरुक्षेत्र के युद्ध क्षेत्र मेें भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद के रूप मेें संकलित किया गया है।

इसे दूसरी या पहली शताब्दी ई. पू. मेें रचित माना जाता है।

आप को बता दें कि महाभारत की रचना महर्षि वेद व्यास ने 3100-1200 ईसा पूर्व की थी।

प्रासंगिकता: इसे सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए एक मार्गदर्शक माना जाता है।

नाट्यशास्त्र:

इसे नाट्यवेद का सार माना जाता है। नाट्यशास्त्र निष्पादन कलाओं की एक मौखिक परंपरा है, जिसमेें 36,000 छंद शामिल
हैैं। इसे गंधर्ववेद के नाम से भी जाना जाता है।



यह नाटक (नाट्य), निष्पादन (अभिनय), सौंदर्य भावना (रस), भावना (भाव) और संगीत (संगीत) से संबंधित है

ऐसा माना जाता है कि इसे भरतमुनि ने संस्कृत मेें दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास संहिताबद्ध किया था।

इसने भारतीय काव्यशास्त्र, रंगमंच, नत्यृ और सौंदर्यशास्त्र की नीवं रखी।


यूनेस्को का मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड प्रोग्राम

यूनेस्को ने इसे 1992 मेें शुरू किया था। इसका उद्देश्य विश्व की मूल्यवान दस्तावेजी विरासत को संरक्षित करना और उसे सार्वभौमिक रूप से सुलभ बनाना है।

यह मानव सभ्यता को प्रभावित करने वाली दस्तावेजी विरासत को मान्यता देता है।

इसका उद्देश्य ऐतिहासिक ग्रंथों, पांडुलिपियों और अभिलेखागार को संरक्षित करना तथा उन तक पहुुंच को बढ़़ावा देना है।

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