प्रयागराज का महाकुंभ क्षेत्र (Mahakumbh Area) बना यूपी का 76वां जिला

उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रयागराज में महाकुंभ क्षेत्र को नया जिला घोषित किया है। नवगठित जिले को "महाकुंभ मेला" (mahakumbh Mela) के नाम से जाना जाएगा। 



आगामी कुंभ मेले के प्रबंधन और प्रशासन को सुव्यवस्थित करने के लिए यह निर्णय लिया गया है। नये जिले बनाने की मंशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने माघ मेला 2024 के दौरान व्यक्त की थी। 

इस नए जिले के गठन के बाद उत्तर प्रदेश में कुल 76 जिले हो गए हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेश का सबसे नया जिला संभल था जिसे 28 सितंबर, 2011 को गठित किया गया था।

नए जिले की अधिसूचना में प्रयागराज जिले की चार तहसीलों के 67 गांव शामिल है। नए जिले की अधिसूचना उत्तर प्रदेश प्रयागराज मेला अथॉरिटी एक्ट, 2017 के तहत जारी किया गया है।



सरकारी आदेश में कहा गया है, "महाकुंभ मेला जिले/क्षेत्र में, मेला अधिकारी, कुंभ मेला, प्रयागराज को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 14(1) एवं अन्य धाराओं के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जिला मजिस्ट्रेट एवं अपर जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्राप्त होंगी तथा उक्त संहिता या वर्तमान में लागू किसी अन्य कानून के अंतर्गत जिला मजिस्ट्रेट की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी तथा सभी श्रेणी के मामलों में कलेक्टर की सभी शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार होगा।"


महाकुंभ मेले के बारे में

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा समागम समारोह है। यह भारत में चार जगह पर किसी नदी के किनारे या उनके संगम पर लगते हैं; जैसे- उत्तराखंड में हरिद्वार, गंगा तट पर; उत्तर प्रदेश में प्रयाग, गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर; मध्य प्रदेश में उज्जैन, शिप्रा तट पर एवं महाराष्ट्र में नासिक, गोदावरी के तट पर। प्रत्येक जगह पर हर 12 साल पर कुंभ मेला लगता है, यानी प्रत्येक 4 साल पर किसी एक जगह कुंभ मेला लगता है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने अमृत (अमरता का पेय) की बूँदें कुंभ (बर्तन) में भरकर ले जाते समय चार स्थानों पर गिराई थीं। प्रयागराज सहित इन चार स्थानों को वर्तमान कुंभ मेले के स्थल के रूप में पहचाना जाता है।


कुंभ मेला नाम तथा उसमें परिवर्तन

कुंभ मेले का नाम चारों जगह पर अलग-अलग है। प्रयाग त्रिवेणी संगम पर लगने वाल मेले का नाम "कुम्भ मेला" पहले नहीं था, यह 19वीं शताब्दी के मध्य के बाद आया है। इसका पता अलग-अलग साक्ष्यों से लगता है।

चीनी यात्री व्हेन सॉन्ग अपने लेख में कुंभ मेले को सम्राट शिलादित्य (हर्ष) से जोड़कर उल्लेख किया है। उसने बताया है कि हर्ष हर 5 साल पर प्रयाग त्रिवेणी संगम पर एक अनुष्ठान का आयोजन करता था जिसमें अपनी सभी जमा पूंजी जनता में दान कर देता था।

19वीं शताब्दी से पहले प्रयाग में 12 साल के चक्र वाले कुंभ मेले का कोई रिकॉर्ड नहीं है। मत्स्य पुराण, चैतन्य चरित्रामृत, रामचरितमानस, तबकात-ए-अकबरी, आइन-ए-अकबरी, यादगा-ए-बहादुरी, खुलासत-उत-तवारीख और ब्रिटिश अभिलेख, सभी में इलाहबाद में लगने वाले केवल वार्षिक मेले का जिक्र है न की की कुंभ मेले का। हालांकि खुलासत-उत-तवारीख (लगभग 1695-1699) ने केवल हरिद्वार में होने वाले मेले के वर्णन के लिए "कुंभ मेला" शब्द का उपयोग किया है।

प्रयागराज में अशोक स्तंभ में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से कई शिलालेख हैं। लगभग 1575 ई. के आसपास, अकबर के काल के बीरबल ने एक शिलालेख जोड़ा जिसमें "प्रयाग तीर्थ राज में माघ मेले" का उल्लेख है।

इलाहाबाद में कुंभ मेले का सबसे पहला उल्लेख औपनिवेशिक युग के दस्तावेजों में 19वीं शताब्दी के मध्य के बाद ही मिलता है। 

कहा जाता है कि प्रयाग कुंभ मेले का नाम प्रयाग के साधु संतों ने हरिद्वार कुंभ मेले से उधार लिया है। हालांकि 12 दिसंबर 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में एक प्रस्ताव लाकर अर्ध कुंभ का नाम बदलकर "कुंभ" तथा कुंभ को "महाकुंभ" कर दिया।

अतः अब प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर हर 144 साल पर लगने वाले मेले को "वृहत महाकुंभ",  हर 12 साल में लगने वाले कुंभ मेला को '"महाकुंभ मेला", हर 6 साल पर लगने वाल मेले को "कुंभ मेला" तथा प्रत्येक साल लगने वाल मेले को "माघ मेला" कहते हैं।


कुम्भ मेला का आयोजन

इलाहाबाद में माघ मेला हर सर्दियों में माघ में आयोजित किया जाता है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। अर्ध कुंभ और महाकुंभ भी इसी समय आयोजित किए जाते हैं।



2013 का कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम था, जिसमें लगभग 120 मिलियन आगंतुक आए थे, जिसमें 10 फरवरी 2013 (मौनी अमावस्या के दिन) एक ही दिन में 30 मिलियन से अधिक लोग शामिल थे। यह दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समारोह था।

हर 12 साल में एक बार आयोजित होने वाला आगामी महाकुंभ प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी, 2025 को समाप्त होगा। उत्तर प्रदेश का अनुमान है कि महाकुंभ 2025 में 400 मिलियन से अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है।

2025 के महाकुंभ को "वृहद महाकुंभ" भी कहा जा रहा है। बृहद महाकुंभ 12 महाकुंभ के बराबर यानी 144 साल पर लगता है।


कुम्भ मेला का महत्व

  • इस त्यौहार/समारोह को पानी में एक अनुष्ठान डुबकी द्वारा चिन्हित किया जाता है, लेकिन यह कई मेलों, शिक्षा, संतों द्वारा धार्मिक प्रवचन, भिक्षुओं या गरीबों के सामूहिक भोजन और मनोरंजन तमाशे के साथ सामुदायिक वाणिज्य का उत्सव भी है।
  • यह समारोह दुनिया के सामने लोगों, धर्मों और संस्कृतियों का विशाल और शांतिपूर्ण समागम का उदाहरण पेश करता है।
  • पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार होता है।
  • लोगों को आजीविका और सरकार को राजस्व प्राप्त होता है।
  • लोगों के बीच एकता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • दिसंबर, 2017 में यूनेस्को ने कुंभ को "मानव की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत" घोषित किया।


कुंभ मेला क्षेत्र में देखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण जगह/चीजें

  • तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का अशोक स्तंभ
  • अक्षय वट वृक्ष
  • अकबर का किला, जो अकबर द्वारा 1575 में यमुना नदी के किनारे बनवाया गया था।
  • नागवशुकी मंदिर
  • नदियों का संगम स्थल
  • बड़े हनुमान मंदिर
  • प्रशासनिक व्यवस्था


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